रविवार, 5 जुलाई 2009

"कहाँ हो परशुराम" से टूटा सांस्कृतिक सन्नाटा....



एक लंबे अर्से के बाद रांची में हस्ताक्षर के द्वारा "कहाँ हो परशुराम" नाटक की प्रस्तुति के साथ ही सांस्कृतिक सन्नाटा टूटता सा दिखाई दिया। अशोक पागल द्वारा लिखित और निर्देशित नाटक "कहाँ हो परशुराम " का मंचन दिनांक ०४ जुलाई को रांची विश्वविद्यालय के केंद्रीय पुस्तकालय में किया गया। नाटक के कलाकारों में शिशिर पंडित, सुशील अंकन, विश्वनाथ प्रसाद, रीना सहाय, अशोक पागल, ओमप्रकाश , कीर्तिशंकर वर्मा और मृदुला ने अभिनय किया। मंच एवं रूप सज्जा के निर्देशक थे विश्वनाथ प्रसाद, ध्वनि प्रभाव था सुशील अंकन का और प्रकाश व्यवस्था थी ऋषि प्रकाश की। सहयोग था नरेश प्रसाद, उषा साहु , रविरंजन कुमार और संतोष का।
इस नाटक के साक्षी बने रांची नगर के चर्चित साहित्यकार, कलाकार एवं प्रशासकीय पदाधिकारी गण। जिनमें मुख्य थे अशोक प्रियदर्शी, विद्याभूषण, बिमला चरण शर्मा, निवास चंद्र ठाकुर, केदार नाथ पाण्डेय, चंद्र मोहन खन्ना, महफूज आलम, बिनोद कुमार, भरत अग्रवाल, स्वामी दिव्यानंद, राजेंद्र कुमार टांटिया, सुनीता कुमारी गुप्ता, जयप्रकाश खरे आदि....
इस नाटक की प्रस्तुति ने दर्शकों को नाटक देखने का एक अच्छा अवसर देते हुए यह भी सोचने को विवश किया कि नगर की सांस्कृतिक विरासत को कैसे जीवित और अविराम रखा जाय। भविष्य में और अच्छे नाटक देखने की उम्मीद के साथ पूरे हस्ताक्षर परिवार को दर्शकों ने ढेर सारी बधाईयाँ दीं। सचमुच सांस्कृतिक सन्नाटा टूटा.....
- सुशील अंकन -