रविवार, 25 अक्तूबर 2009

छठ के बहाने.....


आज २००९ का छठ संपन्न हुआ। मेरे घर में भी छठ हुआ था। रांची के सभी छठ घाट पिछले कई दिनों से स्थानीय अखबारों की सुर्खियों में थे। लिहाज़ा मैंने यह तय किया कि शहर से थोड़ी दूर किसी घाट को पूजन के लिए चुना जाय। मैंने वही किया। शहर से लगभग पाँच किलोमीटर दूर दक्षिण में पंडरा क्षेत्र में एक छोटी नदी को अर्घ्यदान के लिए चुना।
पूरे विध विधान और पवित्रता से हमलोग छठ घाट के लिए रवाना हुए। छोटी छोटी ढेर सारी बंप वाली गलियों को पार करते हुए नदी के समीप पहुंचे। पथरीली उबड़ खाबड़ साफ़ गन्दी पगडंडियो से होते हुए अंततः नदी के तट पर पहुँचे।
किंतु यह क्या ? वहां पहुँच कर मन खिन्न हो गया पानी देख कर। बहती नदी का पानी और इतना गन्दा....? कोई दूसरा उपचार नही था इसलिए उसी पानी में पत्नी को स्नान और ध्यान कर छठ का अर्घ्यदान करना पड़ा। सूर्य ध्यान के समय पानी के भीतर पता नही कौन कौन से जीव जंतु पत्नी के पैरों में रेंग और काट रहे थे कि उनका ध्यान सूर्यदेव कि जगह , पैरों में ही केंद्रित था। प्रायः सभी व्रतधारियों के साथ यही स्थिति थी।
उसी घाट पर प्रकाश कि व्यवस्था करने वाली एक संस्था बड़े बड़े स्पीकर लगा कर अपनी व्यवस्था की तारीफ़ करते और सहयोग राशि के लिए बार बार आग्रह करते नही थक रहे थे।
जिस डर से शहरी घाटों से भागा था, वही, उस घाट पर भी भोगना ही पड़ा। मुझे ऐसा लगा सबसे उत्तम यही होता कि अपने घर कि छत या आंगन में ही छोटा कुंड बना कर सूर्योपासना का त्यौहार करता। ऐसा करने से सभी प्रकार की शुद्धता का पालन किया जा सकता था साथ ही परेशानियों से भी बचा जा सकता था। सरकार या स्वयं सेवी संगठनो को समय पर छठ घाट की सफाई नही कराने के लिए कोसने से भी बच जाता।
भविष्य में छठ करने वाले सभी व्रतधारियों से मेरा विनम्र निवेदन होगा कि अगर सचमुच सूर्य और प्रकाश की पूजा अर्चना ध्यान पूर्वक करना हो तो अपने अपने घरों में ही करें क्योंकि आने वाले दिनों में भी, न तो सरकार को कर्तव्यबोध होगा और न तो सरकार संपोषित स्वयं सेवी संगठनों को ही। आप स्वयं को ही बदल लें। इससे आप आस्थापूर्वक पूजन तो कर ही पाएंगे।

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