विगत कुछ दिनों से झारखण्ड की फिल्मी दुनिया
"जॉलीवुड" के विकास के बारे में सोंच ही रहा था कि मेरे पिताजी का निधन हो गया इसलिए लगभग
१२-१३ दिनों तक अब घर पर ही रहना हो रहा है। घर में ही कुछ कागज़ पत्तर उलट रहा था कि अखबार के एक कतरन पर नज़र पड़ी कि "आइफा जैसे समारोह झारखण्ड में हो.... तो हजारों टूरिस्ट आकर्षित
होंगे और इसके लिखने वाले हैं ... "लन्दन से अजय गोयल" उन्होंने लिखा है कि हिन्दी फिल्मों के लिए दिए जाने वाले आइफा अवार्ड मेरे गृह नगर लन्दन में होने की सूचना थी पर यह हुआ योर्कशायर में... जो कि एक छोटा सा
काउंटी है यानि एक जिला
है। एक
सप्ताह तक चले इस समारोह को मीडिया ने भी खूब कवर
किया। भारतीय मूल के लगभग १५००० लोग इस समारोह में शामिल हुए। योर्कशायर ने भारतीय कलाकारों को लाने में जो लाखों स्टर्लिंग पाउंड खर्च किए उसे अब वे लोग भुनाने में लगे हैं। वे चाहते हैं
कि भारतीय फ़िल्म मेकर योर्कशायर आ कर फ़िल्म कि शूटिंग करें। योर्कशायर में हुए यह कार्यक्रम किसी "जंगल में मंगल" के सामान था। मुझे आश्चर्य हुआ कि इस तरह के कार्यक्रम भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में क्यों नही आयोजित होतें हैं ? इससे वहां के लोगों को रोजगार भी मिलेगा और वे आर्थिक रूप से सुदृढ़ भी होंगे। यदि
बॉलीवुड, योर्कशायर को दुनिया के नक्शे पर ला सकता है तो झारखण्ड जैसे राज्य को क्यों नही ? यदि झारखण्ड जैसे राज्य में इस तरह के आयोजन होंगे तो वहां भी हजारों टूरिस्ट आकर्षित होंगे। यदि राज्य सरकार और स्थानीय व्यवसायी ऐसे प्रोजेक्ट में पैसे लगायें तो राज्य में
टूरिस्म को बढावा मिल सकता है। मैं ऐसे
पॉँच करोड़पतियों को जानता हूँ जो झारखण्ड में ऐसे समारोह को स्पांसर कर सकते हैं। हालाँकि लन्दन से योर्कशायर मैं नही गया
लेकिन ऐसे समारोह अगर रांची में हो तो मैं फ्लाईट लेकर वहां जरूर जाऊँगा। फ़िर भी मुझे संदेह है कि लोग झारखण्ड को विश्व के नक्शे पर आसानी से खोज लेंगे। लेकिन बॉलीवुड का मतलब उम्मीद और सपने दिखाना है और
मेरा सपना है आइफा २००८ झारखण्ड यानी
"जॉलीवुड" में हो। इस अखबारी कतरन को पढ़ कर मैं सोंच रहा था कि लन्दन में बैठा एक अजय गोयल नाम का आदमी यहाँ की आर्थिक स्थिति के बारे में इतना सोंच सकता है तो अगर यहाँ के लोग इस तरह की सोंच रखें तो क्या झारखण्ड स्वर्ग नही बन जायेगा ?