गुरुवार, 26 फ़रवरी 2009

मेरे पिता मेरे गुरु...

दिनांक २३ फ़रवरी २००९ को मेरे पिता श्री जगदीश नारायण "पवन जी" का देहावसान हो गया। वे ९३ वर्ष के थे। वे परनाती -परपोतों वाला भरा पूरा परिवार छोड़ गए।

मेरे पिता मेरे गुरु भी थे। उनसे मैंने चित्रकारी और लेखन की कला सीखी थी। आकाशवाणी की स्थापना काल से ही वे वहां के मान्यताप्राप्त नाट्य लेखक थे साथ ही १९३६ से लेकर १९५० तक रांची में रंग आन्दोलन के सजग प्रहरी भी बने रहे। चर्चित साहित्यकार राधाकृष्ण (जिनके नाम से राधाकृष्ण पुरस्कार दिया जाता है) के परम मित्रों में थे मेरे पिता जी जगदीश बाबु। पिता जी का राधा बाबु के साथ खूब उठना बैठना और लेखन पर विमर्श करना होता रहता था।

स्वतंत्रता आन्दोलन में भी मेरे पिता जी शामिल हुआ करते थे। जब कभी वे मूड में रहते थे तो स्वतंत्रता आन्दोलन की बातें बताया करते थे और उसमे अपनी भागीदारी का जिक्र करके एक ऐसा चित्र खींच दिया करते थे जैसे सारी घटनाएँ सामने घट रही हों । हम सुनने वाले भाई बहन भी उर्जा से भर जाया करते थे।

कहीं न कहीं उन्ही जज्बातों के कारण ही उनकी तरफ़ मैं भी खिंचा चला जाता था। उनकी सहजता और सरलता किसी से छिपी नही थी। वे हमेशा कहा करते थे की " सादा जीवन उच्च विचार" और अब मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि" यही था उनका जीवन सार" ।

3 टिप्‍पणियां:

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) ने कहा…

सुशील सर.....आपके पिता के देहावसान की बात सुनकर हम सभी को अत्यंत दुखः हुआ है....इस मार्मिक घडी में हम आपके साथ हैं........और कामना करते हैं कि आप इस घडी से और मज़बूत होकर निकले.....!!

रचना गौड़ ’भारती’ ने कहा…

ब्लोगिंग जगत मे आपका स्वागत है
शुभकामनाएं
भावों की अभिव्यक्ति मन को सुकुन पहुंचाती है।
लिखते रहि‌ए लिखने वालों की मंज़िल यही है ।
कविता,गज़ल और शेर के लि‌ए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
मेरे द्वारा संपादित पत्रिका देखें
www.zindagilive08.blogspot.com
आर्ट के लि‌ए देखें
www.chitrasansar.blogspot.com

अनुराग अन्वेषी ने कहा…

सुशील भइया, इस दुख के मौके पर कुछ भी कह पाना बहुत मुश्किल लगता है। पर यह सच है कि किसी भी माध्यम से अपने मन की बात कहीं लिख देने से या कह देने से आदमी का दुख बेहद कम हो जाता है। इस लिहाज से भी आपके ब्लॉगिंग की शुरुआत का स्वागत है।
सेटिंग्स में जाकर वर्ड वेरिफिकेशन के ऑप्शन को हटा दें।