गुरुवार, 26 फ़रवरी 2009

मेरे मन की बात...

कलाकार आज इतना उपेक्षित हो जाएगा मैंने कभी सोचा भी न था। कुछ दूर पीछे देखने पर छऊ सम्राट केदार साहू , प्रसिद्ध रंगकर्मी चितरंजन प्रसाद , सुरेन्द्र शर्मा और अशोक अंचल, प्रसिद्ध नाटककार सिद्धनाथ कुमार आदि के नाम जेहन में उभरते हैं और साथ ही मन में एक टीस उठती है कि क्या झारखण्ड की धरती कलाकारों से इतनी तेजी से वीरान होती रहेगी ? इन कलाकारों को याद करने वाले भी क्या सिर्फ़ इन्ही के घर वाले होंगे ? क्या हमारा या समाज का कोई दायित्व नही बनता है उन्हें याद रखने के लिए ? फ़िर मेरा मन पूछता है झारखण्ड की सरकार से..... कि क्या सरकार के पास कोई ऐसी नीति नही जो उन कलाकारों की तमाम कृतियों को सहेज कर रख सके ? मन बड़ा बेचैन होता है मेरा यह देखकर कि यहाँ तो सारे तंत्र-मंत्र, केवल और केवल दूरदृष्टि विहीन नेताओं के इर्द गिर्द घूमते हुए सिर्फ़ उन्हें ही महिमामंडित करते हैं। अब तो सभी को ऐसे नेताओं से घृणा होने लगी है। प्रदेश कि सारी व्यवस्था ध्वस्त होती नज़र आती है बावजूद इसके आम जनता इन्ही नेताओं से उम्मीद लगाये बैठी है। सुबह से शाम तक आम आदमी मशीन की तरह खटता रहता है और उसके पसीने की बूंद की कीमत वसूलते नज़र आते हैं यही नेता।

मेरा तो मन करता है कि कोई ऐसा संग्रहालय बनाया जाय जिसमे यहाँ के कलाकारों कि कृतियों और प्रस्तुतियों को ऑडियो - विजुअल तकनीक अथवा डॉक्युमेंटरी फिल्मों के माध्यम से संरक्षित किया जा सके ताकि आने वाली पीढियों के लिए एक उदहारण प्रस्तुत किया जा सके और यह काम बिना सरकारी मदद के ख़ुद से ही कलाकारों को करना होगा। मैं इस तरफ़ कदम बढ़ा चुका हूँ और मुझे कलाकारों का साथ चाहिए।


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