
रविवार, 25 अक्टूबर 2009
छठ के बहाने.....

रविवार, 5 जुलाई 2009
"कहाँ हो परशुराम" से टूटा सांस्कृतिक सन्नाटा....
शुक्रवार, 3 अप्रैल 2009
रांची का प्रथम लाइव टेलीकास्ट...

१९९७ में इसी चैत्र महाष्टमी की रात जमशेदपुर की एक इलेक्ट्रोनिक न्यूज़ एजेन्सी " आई व्यू" के द्वारा रांची के महावीर चौंक पर झांकी प्रतियोगिता एवं इस मौके पर आयोजित अन्य खेलों के लाइव प्रसारण के लिए एक कैंप स्टूडियो की व्यवस्था की गयी थी। इसी कैंप स्टूडियो से रांची का पहला लाइव प्रसारण किया गया था। लाइव प्रसारण के प्रथम उदघोषणा एवं आंखों देखी घटनाओं को बताने के लिए कैमरे के सामने थे सुशील अंकन और अनुराग अन्वेषी। इन्ही दोनों के माध्यम से रांची के प्रथम लाइव टेलीकास्ट की शुरुआत होती है। इस कार्यक्रम को लाखों लोगों ने अपने अपने केबुल टेलिविज़न सेट पर देखा था।
मंगलवार, 10 मार्च 2009
होली की हिन्दी...
अग रआ पभी थो ड़ीसी भं गपी लें तोइसे ठी कसेप ढपा एंगे। ज बहम दो नोही भं गके नशेमे रहें गे तभीआ पमुझे स मझपा एंगे औ रमैं आपको ...... मेराख याल हैकि आ पमेरी बा तोंको अ च्छी तर हसम झरहे होंगे । आ पको एकबा रफिर सेहो लीकी शु भकामना देनाठी करहेगा.... हो लीमु बारक हो.... क्याआ पहम कोभी हो लीमु बारक बो लेंगे ? बो लिये न ....
- सु शीलअ कंन -
मंगलवार, 3 मार्च 2009
हे ! परम पिता....
तुम दुनिया में
कोई स्थाई पिता नही रहने देते
क्योंकि , तुम्हारा वजूद हिल जाएगा
और शायद इसलिए भी कि
लोग तुम्हे भूल जाएँ .....
पर मैं तुम्हे बता दूँ
जबतक बच्चे यहाँ जन्मेंगे
पिता शब्द को अमरत्व मिलता रहेगा
पिता का भाव शाश्वत रहेगा
चाहे तुम रहो या न रहो
दुनियावी पिता तो रहेगा ......
-अंकन-
रविवार, 1 मार्च 2009
आइफा जैसे समारोह झारखण्ड में हो....

शनिवार, 28 फ़रवरी 2009
अशोक अंचल जी के साथ बिताये कुछ पल....

अक्सर अंचल जी मेरे स्टूडियो में आया करते थे और घंटों हम दोनों बैठ कर फ़िल्म, नाटक, म्यूजिक के बारे में योजनायें बनाया करते थे। मुझे काम करते देख वे अक्सर कहा करते थे कि " अंकन जी, आप तो एक पूरा पैकेज हैं , स्क्रीनप्ले लिखने से लेकर एडिटिंग और फाइनल प्रोडक्शन तक का सारा काम आप ख़ुद ही करते हैं और वह भी एक ही छत के नीचे ...." दरअसल अंचल जी रांची जैसे छोटे शहर में फ़िल्म बनाने की मुश्किलों से पूरी तरह वाकिफ थे कि यहाँ एक छोटी सी भी फ़िल्म बनाने में कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं। इस दिशा में उनकी दृष्टि काफी दूर तक जाती थी। शायद इसलिए ही उन्होंने मुझे पूरा पैकेज कहा था।
१९९५ में अंचल जी की कुछ कविताओं के संकलन को उन्ही के स्वर में मैंने रिकॉर्ड किया था। उनके अचानक दुनियावी रंगमंच को छोड़ कर चले जाने से आहत मैं उन्ही के बारे में सोंच रहा था कि उनके उसी कविता संकलन की याद आ गयी और मैं उसका मास्टर कैसेट खोजने में लग गया। थोड़े ही प्रयास के बाद मुझे सफलता मिल गयी। उनकी कविताओं को सुनते सुनते मैं अंचल जी की यादों में खो गया.....
गुरुवार, 26 फ़रवरी 2009
मेरे मन की बात...
मेरा तो मन करता है कि कोई ऐसा संग्रहालय बनाया जाय जिसमे यहाँ के कलाकारों कि कृतियों और प्रस्तुतियों को ऑडियो - विजुअल तकनीक अथवा डॉक्युमेंटरी फिल्मों के माध्यम से संरक्षित किया जा सके ताकि आने वाली पीढियों के लिए एक उदहारण प्रस्तुत किया जा सके और यह काम बिना सरकारी मदद के ख़ुद से ही कलाकारों को करना होगा। मैं इस तरफ़ कदम बढ़ा चुका हूँ और मुझे कलाकारों का साथ चाहिए।
मेरे पिता मेरे गुरु...
दिनांक २३ फ़रवरी २००९ को मेरे पिता श्री जगदीश नारायण "पवन जी" का देहावसान हो गया। वे ९३ वर्ष के थे। वे परनाती -परपोतों वाला भरा पूरा परिवार छोड़ गए। मेरे पिता मेरे गुरु भी थे। उनसे मैंने चित्रकारी और लेखन की कला सीखी थी। आकाशवाणी की स्थापना काल से ही वे वहां के मान्यताप्राप्त नाट्य लेखक थे साथ ही १९३६ से लेकर १९५० तक रांची में रंग आन्दोलन के सजग प्रहरी भी बने रहे। चर्चित साहित्यकार राधाकृष्ण (जिनके नाम से राधाकृष्ण पुरस्कार दिया जाता है) के परम मित्रों में थे मेरे पिता जी जगदीश बाबु। पिता जी का राधा बाबु के साथ खूब उठना बैठना और लेखन पर विमर्श करना होता रहता था।
स्वतंत्रता आन्दोलन में भी मेरे पिता जी शामिल हुआ करते थे। जब कभी वे मूड में रहते थे तो स्वतंत्रता आन्दोलन की बातें बताया करते थे और उसमे अपनी भागीदारी का जिक्र करके एक ऐसा चित्र खींच दिया करते थे जैसे सारी घटनाएँ सामने घट रही हों । हम सुनने वाले भाई बहन भी उर्जा से भर जाया करते थे।
कहीं न कहीं उन्ही जज्बातों के कारण ही उनकी तरफ़ मैं भी खिंचा चला जाता था। उनकी सहजता और सरलता किसी से छिपी नही थी। वे हमेशा कहा करते थे की " सादा जीवन उच्च विचार" और अब मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि" यही था उनका जीवन सार" ।
